मुंबई: एब्बोट को ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने इवाब्राडिन के लिए वन्स-आ-डे
फॉर्मूलेशन की मंजूरी दे दी है। दरअसल, यह जानकारी आज खुद एब्बोट ने एक घोषणा के ज़रिए दी। वैसे, अगर गौर करें तो इंडिया में हार्ट से संबंधित कई बीमारियां सदियों से लोगों को होती आ रही हैं। वहीं, इस बीमारी से लड़ते हुए लोग इसका इलाज़ तो करवा लेते हैं, मगर उससे संबंधित उपचार का पालन आमतौर पर कम होता है। ऐसे में जब दवाओं का सेवन रोगी को दिन में कई बार लेना पड़ता है, तो इस दौरान रोगी परेशान तो होता ही है साथ ही कई और बीमारियों को दशतक भी देता है।
अब सवाल उठता है कि आखिर इससे बचा कैसे जाए, तो हम आपको बता दें कि इस समस्या से लड़ने के लिए एब्बोट ने भारत का पहला “वन्स डेली” प्रोलॉनगेड़ रिलीज़ (PR) के वर्शन को विकसित किया है, जो इवाब्राडिन के लंबे समय तक जारी रहने वाले वर्शन में क्रोनिक हार्ट फेलियर और क्रोनिक स्टेबल एनजाइना के रोगियों के लिए काम करता है।
हम यूँ कहें तो यह फ़ॉर्मूलेशन रोगियों के लिए ज़्यादा कॉन्वेनिएंट होगा। खासकर, यह स्वास्थ्य परिणामों को बेहतर बनाने के ऐम से ट्रीटमेंट के पालन को सुविधाजनक बनाने में मदद करेगा। सबसे अच्छी खुशखबरी की बात यो यह है कि एब्बोट आने वाले हफ्तों और इंडियन मार्किट में Ivabradine PR टैबलेट को लॉन्च करने की योजना बना लिया है।
एक नज़र अगर हम भारत में हर साल दर्ज किए गए 0.5-1.8 मिलियन मामलों पर डाले, तो कुछ नए मामलों में 1.3 से 4.6 मिलियन के बीच हार्ट फेलियर रेंज वाले लोगों का अनुमान लगाया जा रहा है। वैसे, ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज के एक अध्ययन के अनुसार, कुल अनुमान 14.4 मिलियन पुरुष और 7.7 मिलियन महिलाओं ने कोरोनरी हार्ट डिसीज़ से संबंधित डिसेबिलिटी के लिए अपने प्रोडक्टिव साल को खो दिया है।
वैसे, देखा जाए तो एक तरफ जहां देश में बीमारी का बर्डन कई ज़्यादा है। वहीं, दूसरी तरफ ट्रीटमेंट के लिए नॉन-आधीरेन्स एक महत्वपूर्ण चुनौती के रूप में है।
बता दें कि अध्ययनों में पाया गया है कि भारत में कार्डियक डिसीज़ से पीड़ित बहुत से लोग अपनी दवाओं को अपने डॉक्टर द्वारा प्रिसक्राइब्ड नहीं करते हैं, और AIIMS के अध्ययन का अनुमान है कि दवा का नॉन-आधीरेन्स 24% से लेकर कार्डियक डिसीज़ वाले लोगों के लिए 50% -80% तक होता है।
आमतौर पर बीमारी से लड़ने के लिए रोगी दिन में कई दवाओं का डोज लेता है, मगर इससे बचने के लिए Ivabradine PR टैबलेट को वन्स-आ-डे के रूप में निर्धारित किया जा सकता है। वैसे, एब्बोट द्वारा भारत में 21 केंद्रों पर किया गया ‘फेज 3’ क्लिनिकल स्टडी है।