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IIIT Delhi proposes “life-changing solution” for COVID-19 vaccine

Friday October 16, 2020 at 4:22 am

COVID-19 महामारी की वजह से दुनियाभर में अभी तक जो नुकसान हुआ है, उसे रोकने के लिए एक तरफ जहां विभिन्न कंपनियां इसकी वैक्सीन बनने की जदोजहद में लगी हुई हैं। वहीं, ये कंपनियां वैक्सीन का उत्पाद करने वाली पहली कंपनी की दौड़ में भी शामिल हो गई हैं। इस दौड़ की वजह से वैक्सीन के कई क्लीनिकल ट्रायल्स किये गए, लेकिन वह अभी भी सकारात्मक परिणाम नहीं दिखा पा रहे हैं। दरअसल, इसका मुख्य कारण कंपनियों का कई लिमिटेशन के बीच काम करना है, जिसका साइड-इफ़ेक्ट भी उन्हें देखना पड़ रहा है।

हालांकि, आईआईआईटी दिल्ली में एवर-इनोवेटिव कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी डिपार्टमेंट ने इन विभिन्न वैक्सीन की समीक्षा की है। साथ ही वायरस से लड़ने के लिए डॉक्टरों, जेनेटिक इंजीनियरों और एपिडेमियोलॉजिस्ट्स द्वारा विअबले वैक्सीन को डेवेलप करने में जिन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है, उसके लिए भी वे लोग इसे दूर करने के लिए कई प्रोबबल सॉल्यूशन्स की मदद ले रहे हैं।

क्या आप जानते हैं कि ज्यादातर मामलों में, वैक्सीन टारगेट वायरल प्रोटीन या स्पेसिफिक प्रोटीन होते हैं, मुख्य रूप से उन्हें स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है। बता दें कि, पहले किए गए रिसर्च स्टडी के अनुसार जो कोरोना वायरस स्ट्रेन्स पर किए गए हैं, उन वैक्सीन टारगेट्स में साइड इफेक्ट की एक वाइड रेंज हो सकती है, जिसमें साइटोकिन तूफानों (यानी, IL6), फेफड़े की इम्यूनोपैथोलॉजी, हेपेटाइटिस, हेमटॉक्सिसिटी, साइटोटॉक्सिसिटी, क्रॉस-रिएक्टिव एंटीबॉडीज और एलर्जेनिटी शामिल हैं।

आईआईआईटी दिल्ली के कम्प्यूटेशनल विभाग ने पता लगाया है कि विअबले वैक्सीन कैंडिडेट के रूप में प्रोटीन से एपिटोप्स/पेप्टाइड पर स्विच करने से इनसे होने वाले साइड-इफेक्ट्स को दूर करने में मदद मिलेगी।
विभाग ने यह भी सुझाव दिया है कि COVID-19 के खिलाफ लड़ने और पोटेंशियल वैक्सीन कैंडिडेट की पहचान के लिए कंप्यूटर-एडेड टेक्निक्स का उपयोग करने की आवश्यकता है। ऐसे में यह भी नोट किया गया है कि जो व्यक्ति COVID-19 से संक्रमित हैं। वे असिम्प्टोमैटिक रहते हैं, लेकिन इस बीमारी के संक्रमण की संभावना ज़्यादा होती है। इसका मतलब यह है कि दोनों इननेट और अडॉप्टिवे इम्युनिटी COVID-19 के ट्रांसमिशन में एक भूमिका निभाते हैं।

आईआईआईटी दिल्ली के कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी विभाग के गजेंद्र पीएस राघव ने सही वैक्सीन खोजने में बायोइन्फरमेटिक्स के उपयोग के महत्व को संबोधित करते हुए कहा, “ऐसे कई सिलिको टूल्स हैं, जो इंटरल्यूकिन-इन्डूसिंग प्रॉपर्टीज और प्रो/एन्टी-इन्फ्लामेट्री प्रॉपर्टीज के साथ-साथ भविष्यवाणी कर सकते हैं। इसके अलावा, सिलिको टूल्स में कई सबयूनिट वैक्सीन और इम्यूनोथेरेप्यूटिक्स डिजाइन उपलब्ध हैं।
8 सितंबर, 2020 तक NCBI वायरस डेटा हब में SARS-CoV-2 के बारे में 244,682 प्रोटीन और 22,892 न्यूक्लियोटाइड सीक्वेंस इन्फॉर्मेशन उपलब्ध हैं। यह स्पष्ट है कि सभी 244,682 प्रोटीन वैक्सीन उम्मीदवार नहीं हो सकते हैं। इसका मतलब है कि हम प्रक्रिया को तेज करने के लिए पोटेंशियल वैक्सीन कैंडिडेट की पहचान करने के लिए विभिन्न सिलिको टूल्स का उपयोग कर सकते हैं। ”

IIIT दिल्ली में कम्प्यूटेशनल बायोलॉजी विभाग के रिसर्च एसोसिएट सलमान सादुल्ला उस्मानी ने कहा, “हम COVID-19 के खिलाफ लड़ने वाली इतनी महत्वपूर्ण वैक्सीन को बनाने के लिए अपना कीमती समय और रिसोर्स लगा कर आगे बढ़ रहे हैं, तो हमें बायोइन्फरमेटिक्स रिसोर्स पर भरोसा करना चाहिए, क्योंकि वे हमें विफलता की संभावना को कम करने में मदद करेंगे। ऐसे में इस महामारी की वजह से
जो परेशानियां हो रही हैं, उसे देखते हुए हमें ट्रायल्स को गति देने की आवश्यकता है। इसके लिए वैक्सीन कैंडिडेट की संख्या को कम करने की आवयश्कता है।
वैसे, बायोइन्फरमेटिक्स रिसोर्स साइड इफेक्ट को कम कर सकते हैं। वहीं, महामारी ने ग्लोबली स्तर पर आबादी की शारीरिक और मानसिक सेहत पर गंभीर असर डाला है, और समय के साथ हम बायोइन्फरमेटिक्स का लाभ उठा रहे हैं, ताकि इस समस्या का मुकाबला किया जा सके।”