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How can the Pharma sector contribute to “superbugs” menus in India?

Sunday October 11, 2020 at 11:25 am
हम सभी जानते हैं कि भारत में दुनिया के सबसे ज़्यादा बैक्टीरियल इन्फेक्शन्स मौजूद हैं, जिस लिस्ट में ट्यूबरक्यूलोसिस, कॉलरा, टाइफाइड और निमोनिया जैसी बीमारियां शामिल हैं। मगर, वास्तव में देखें तो दुनिया भर में ट्यूबरक्यूलोसिस रोगियों की संख्या सबसे ज़्यादा है। क्या आप जानते हैं कि मल्टी-ड्रग रेसिस्टेंट (MDR) और एक्सटेंसीवेली ड्रग-रेसिस्टेंट (XDR) ट्यूबरक्यूलोसिस के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। जी हां, अगर आप कुछ रिपोर्ट्स को देखें तो एक एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस पेपर पर 2016 में पब्लिश्ड
रिव्यु के अनुसार, एंटीबायोटिक-रेसिस्टेंट नियोनटाल इंफेक्शन भारत में हर साल 60,000 नवजात शिशुओं के जीवन का दावा करता है।

ऐसे में सवाल ये है कि एक तरफ जहां भारत जैसे देश में, 22% आबादी अभी भी गरीबी रेखा से नीचे है। वहीं, दूसरी तरफ बढ़ी हुई कॉस्ट से लोगों को प्रॉपर ट्रीटमेंट मिलने की संभावना कम हो जाती है, जिसकी वजह से इन्फेक्शन को ठीक करना बेहद मुश्किल हो जाता है।
टीबी एक एयरबोन डिजीज है, जो एक महामारी को जन्म दे सकता है। वहीं, MDR और XDR टीबी के मामले में काफी गंभीर समस्या बन जाता है, जिसके परिणामस्वरूप यह एक टीबी महामारी के रूप में जाना जाता है। वैसे, सुपरबग्स में टीबी एकमात्र गंभीर बीमारी नहीं है, बल्कि निमोनिया भी एक खतरनाक इंफेक्शन है।

अब अगर नज़र डालें तो 2017 के एक अध्ययन में, 11 राज्यों के कई अस्पतालों में निमोनिया से संक्रमित बच्चों के ब्लड सैम्पल्स में मौजूद बैक्टीरिया एस. निमोनिया की जांच की गई, जिसमें पाया गया कि इनमें से अधिकांश बैक्टीरिया के दावा का रेसिस्टेंट परसेंटेज फर्स्ट-लाइन एंटीबायोटिक-66%, एरिथ्रोमाइसिन-37% और पेनिसिलिन-8% के हिसाब से है। वहीं, 2017 के एक और अध्ययन के अनुसार, निमोनिया के वजह से संक्रमित 69% रोगी मर चुके थे।

इन दोनों सुपरबग्स बीमारियों में कार्बापीनेम्स के रेसिस्टेंट को पाया गया, जिसका इस्तेमाल एंटीबायोटिक्स MDR संक्रमणों का इलाज करने के लिए किया जाता है। वहीं, कॉलिस्टिन एंटीबायोटिक का उपयोग तबकिया जाता है, जब किसी केस में कोई अन्य एंटीबायोटिक काम नहीं करती।

बता दें कि, एंटीबायोटिक्स का उपयोग न केवल मनुष्यों में होने वाली बीमारियों से निपटने के लिए किया जाता है, बल्कि जानवरों के लिए भी किया जाता है। इससे जानवर काफी स्वस्थ रहते हैं। WHO ने 2015 में “पोस्ट-एंटीबायोटिक” एरा के पास आने की वार्निंग दी थी, जिसके हिसाब से वर्तमान में यह अनुमान लगाया गया है कि ड्रग रेसिस्टेंट इंफेक्शन की वजह से दुनिया भर में लगभग 700,000 लोग मारते हैं। इस आंकड़ें के हिसाब से यह रेश्यो 2050 तक 10 मिलियन तक पहुंच सकता है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, 2010 में किसी भी अन्य देश की तुलना में भारत के हर एक व्यक्ति ने ज़्यादा एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन किया है। क्या आप जानते हैं कि 2001 से 2010 तक देश में दवाओं का सेवन 62 प्रतिशत तक किया गया है। वहीं, संयुक्त राष्ट्र के अनुमानों के अनुसार, एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट का अगर बचाओं नहीं किया, तो 2050 तक दुनिया भर में 10 मिलियन मौतें हो सकती हैं। वैसे, भारत में एंटीबायोटिक के लगभग 50% नुस्खे हैं। साथ ही 64% अनएप्रूव्ड
एंटीबायोटिक्स बेचे गए। ऐसे में एंटीबायोटिक रेसिस्टेंट के बारे में सार्वजनिक रूप से बातचीत करने की तुरंत आवश्यकता है।

[ ] फार्मा सेक्टर इसमें कैसे योगदान दे सकता है?
फार्मास्युटिकल कंपनियों के पास AMR के बारे में भरपूर नॉलेज़ है, जिससे वह हेल्थ केअर प्रोविडर्स के बीच प्रेस्क्रिबिंग बिहेवियर को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। हालांकि, फार्मास्युटिकल कंपनियों का इस पर बहुत नियंत्रण नहीं है। मगर, एक बार दवा थोक विक्रेताओं, फार्मेसियों या अस्पतालों को बेच दी गई है, तो भी वे एंटीमाइक्रोबियल रेसिस्टेंट के खिलाफ लड़ाई में योगदान कर सकते हैं। वह, इन्फेक्शन के दौरान इलाज़ में इस्तेमाल होने वाले प्रोडक्ट्स का उत्पाद बड़े पैमाने पर कर सकते हैं, जिससे रोगियों के इलाज में वृद्धि हो सकती है। वहीं, WHO का सुझाव है कि फार्मा कंपनियों को दवा के प्रमोशन, डायरेक्ट-टू-कंज़्यूमर एडवरटाइजिंग और इंटरनेट के एडवरटाइजिंग के मानकों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।

निश्चित रूप से, दवा कंपनियों को खुद के प्रोडक्ट्स की क्वालिटी को सुनिश्चित करना, पार्टनर्स और सप्लायर्स के साथ अच्छे तरीके से काम करना और एनवायर्नमेंटल लेजिस्लेशन का पालन करना चाहिए। इससे वह अच्छे क्वालिटी वाले रॉ मैटेरियल का उपयोग कर सकते है, और प्रोडक्ट्स के रिकॉल को कम करने के लिए दवाओं के हाई स्टैण्डर्ड को निर्धारित करने में मदद कर सकते हैं।

इंडस्ट्री में रहने के लिए सेल्फ-रेगुलेशन का भी अभ्यास करना बेहद ज़रूरी है। यह दवा निर्माताओं के हित में है, क्योंकि उन्हें आपूर्तिकर्ताओं से हाई स्टैण्डर्ड का पालन करने के लिए अनुरोध करने के साथ ये सुनिश्चित करना चाहिए की उनकी दवाएं हाईएस्ट क्वालिटी की हैं या नहीं। वैसे, कुछ सालों में फार्मास्युटिकल उद्योग की बुरी हिस्सेदारी रहीं है, लेकिन एएमआर का मुकाबला करने के लिए उनके द्वारा दिया गया योगदान उनके लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

वहीं, इंडस्ट्री को ट्रेनिंग में इन्वेस्ट करना, कम्युनिटी के लिए ऑनलाइन एजुकेशनल रिसोर्सेज बनाना, पेशेंट इंगेजमेंट और पेशेंट एडवोकेसी बनाना चाहिए। साथ ही वैश्विक और स्थानीय स्तर पर सरवीलांस प्रोग्राम्स पर खास ध्यान देना चाहिए।

भले ही फार्मा निर्माता अपने डिस्ट्रीब्यूशन को नियंत्रित करते हैं, फिर भी वे बाजार में उपलब्ध नकली दवाओं के बारे में सुनिश्चित नहीं हो सकते हैं, जिसके चलते उन्हें बहुराष्ट्रीय फार्मा निर्माण कंपनियों के ब्रांड नाम से बेचा जाता है। ऐसे में इसे नियंत्रित करने के लिए फार्मा निर्माताओं को वेंडर और टेक्नोलॉजी अग्नोस्टिक स्टैंडर्ड्स के आधार पर धोखेबाज़ी का पता लगाने और प्रोडक्ट ऑथेंटिकेशन को सक्षम करने के लिए ट्रेसबिलिटी सॉल्यूशन्स में इन्वेस्ट करने की आवश्यकता है। GS1 स्टैंडर्ड्स ने सप्लाई चैन में यूनीक्यूली इडेंटिफ्यिंग प्रोडक्ट्स और मल्टीप्ल ट्रेडिंग सिस्टम को प्रमाणित करने के लिए वन क्लाउड-बेस्ड सिस्टम का उपयोग करके इसे सक्षम किया, जिससे बहुत बदलाव देखने को मिला।

आज, बाजार में प्रिस्क्रिप्शन आधारित एंटीबायोटिक दवाओं को काउंटर उत्पादों की तरह बेचा जा रहा है। इस खतरे को रोकने के लिए, बाजार में बेचे जा रहे सभी दवाइयों पर नज़र रखने के लिए स्वास्थ्य विभागों के समर्थन की भी आवश्यकता है।