क्या सच में रेमडेसिविर कोरोना संक्रमितों के लिए होगी वरदान?
Tuesday May 19, 2020 at 11:03 amरेमडेसिवर पर दुनिया के कई देशों में क्लीनिकल ट्रायल हुए, जिनमें पाया गया कि इस दवा के इस्तेमाल से रोगियों के ठीक होने का समय 15 दिन से घटकर 11 दिन हो जाता है। दरअसल, ये दवा वायरस के जीनोम पर असर करती है, जिससे उसके बढ़ने की क्षमता पर असर पड़ता है। कैलिफोर्निया स्थित अमेरिकी कंपनी गिलीएड ने ये दवा इबोला बीमारी के लिए बनाई थी।
गिलीड ने बुधवार को इस बात की जानकारी दी कि अमेरिका की दवा कंपनी ने कोविड रोगियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाली दवा रेमडेसिविर की आपूर्ति बढ़ाने के लिए भारत और पाकिस्तान की दवा कंपनियों के साथ समझौता किया है। अमेरिकी फार्मास्युटिकल कंपनी गिलीड ने भारत और पाकिस्तान की पांच दवा कंपनियों के साथ समझौता किया है, जिससे वो 127 देशों में इस दवा को उपलब्ध करा सकेंगी।
दरअसल, गिलिड की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि अभी कंपनी ने जिन कंपनियों के साथ समझौता किया है, उसके तहत इन पाँचों कंपनियों को गिलीड से इस दवा को बनाने की टेक्नोलॉजी मिलेगी, जिससे वो दवा का उत्पादन जल्दी कर सकेंगे। बयान के अनुसार इस लाइसेंस के लिए कंपनी तब तक रॉयल्टी नहीं लेगी जब तक कि विश्व स्वास्थ्य संगठन कोविड-19 को लेकर घोषित आपातकाल को वापस नहीं हटा लेता, या इस बीमारी की कोई नई दवा या वैक्सीन को नहीं बना लिया जाता।
तो चलिए एक नज़र भारत की उन चार कंपनियों पर डालते हैं, जिनके साथ समझौता किया गया है। सिप्ला लिमिटेड, हेटेरो लैब्स लिमिटेड, ज्यूबिलेंट लाइफसाइंसेज और माइलन। वहीं, पाकिस्तान की कंपनी का नाम है फिरोजसन्स लेबोरेट्रीज।
हैदराबाद स्थित निजी कंपनी हेटेरो लैब्स के महाप्रबंधक वाम्सी कृष्णा बांदी ने एक न्यूज चैनल से कहा कि अभी ये कहना मुश्किल है कि दवा की कीमत क्या होगी और इसका उत्पादन कब शुरू होगा। उन्होंने आगे कहा, ”स्थिति जून में और स्पष्ट होगी। हमारा अनुमान है कि इस दवा का सरकारी संस्थानों के जरिए नियंत्रित इस्तेमाल होगा। हमारा मुख्य उद्देश्य है कि भारत अगर इसका इस्तेमाल करता है तो वो इसे बनाने को लेकर आत्मनिर्भर हो जाए।“
क्या आप जानते हैं कि एक अरब डॉलर के कारोबार वाली ये कंपनी दुनिया की सबसे बड़ी एंटी-रेट्रोवायरल दवा बनाने वाली कंपनियों में आती है, जो एचआईवी-एड्स के 50 लाख रोगियों को दवा उपलब्ध कराती है।हेटेरो लैब्स दुनियाभर में अपने 36 कारखानों में लगभग 300 तरह की दवाएं बनाती है। फिलहाल भारत में वैज्ञानिकों और दवा नियंत्रकों को ये तय करना है कि वे इस दवा का इस्तेमाल कैसे करेंगे।
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक रमन गंगाखेडकर ने कहा है कि वो इस दवा के इस्तेमाल के बारे में विचार करेंगे यदि भारतीय दवा कंपनियां इन्हें बना सकें। उन्होंने कहा, “प्रारंभिक आंकड़ों से ऐसा लगता है कि ये दवा कारगर है। हम डब्ल्यूएचओ के परीक्षणों के नतीजों की प्रतीक्षा करेंगे और ये भी देखेंगे कि क्या दूसरी कंपनियां भी इस पर काम कर सकती हैं।“
अमरीकी संस्था नेशनल इंस्टीच्यूट ऑफ एलर्जी एंड इन्फेक्शस डिजीजेस (NIAID) ने इस दवा का क्लीनिकल ट्रायल किया था, जिसमें दुनिया के कई देशों के हॉस्पिटलों में 1,063 लोगों पर परीक्षण किया गया और जिनमें अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस, इटली, चीन और दक्षिण कोरिया जैसे देश शामिल हैं।
कुछ रोगियों को दवाएं दी गईं जबकि कुछ का प्लैसीबो या वैकल्पिक इलाज किया गया। NIAID के प्रमुख एंथनी फाउची ने कहा, रेमडेसिविर से स्पष्ट देखा गया कि इससे रोगियों में सुधार का समय घट गया है। उन्होंने कहा कि नतीजों से ये सिद्ध हो गया कि कोई दवा इस वायरस को रोक सकती है और इससे रोगियों के इलाज की संभावना का द्वार खुल गया।
मगर इस दवा से इस बात का कोई स्पष्ट संकेत नहीं मिल सका है कि इससे कोरोना संक्रमण से होने वाली मौतों को रोका जा सकता है। जिन रोगियों को रेमडेसिवर दी गई उनमें मृत्यु दर 8 फीसदी पाई गई। वहीं जिन रोगियों का इलाज प्लेसिबो से किया गया उनमें मृत्यु दर 11.6 फीसदी थी।