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जेनरिक दवाओं के लिए भारत पर आश्रित हुई दुनिया!

Sunday May 24, 2020 at 10:56 am

जेनरिक दवा के मामलों में भारत आज विश्व की बड़ी उम्मीद बनकर उभरा है। जी हां, कोविड-19 महामारी के दौरान हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन की मांग ने यह साबित कर दिया है। दरअसल, भारत कई देशों को जेनरिक दवाओं का निर्यात कर रहा है। हालांकि, भारत अभी भी दवाओं के कच्चे माल के लिए चीन पर निर्भर है।

बता दें कि, भारतीय कंपनियों ने नामचीन दवाओं की रिवर्स इंजीनियरिंग के ज़रिए कानूनी रूप से मान्य इनके दूसरे संस्करण लॉन्च किए। 1995 में विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) ने दवा पेटेंट को 20 साल की सुरक्षा देने का समझौता पेश किया और कंपनियों को इसके पालन के लिए 10 साल दिए गए।

हालांकि, जब एचआइवी संकट आया तो स्पष्ट था कि गरीब देशों को सस्ती दवाओं की जरूरत थी। डब्ल्यूटीओ ने माना कि सदस्य देश सार्वजनिक स्वास्थ्य की रक्षा के लिए आवश्यक दवाओं के सामान्य संस्करण बनाने के लिए निर्माताओं को लाइसेंस दे सकते हैं। 2001 में, भारतीय दवा कंपनी सिप्ला ने कई ब्रांड नाम वाली दवाओं की रिवर्स इंजीनियरिंग की। अफ्रीकी देशों और सहायता समूहों के लिए एक डॉलर एक दिन के लिए दवा की पेशकश की गई। वहीं, ब्रांड-नाम वाले संस्करणों से यह 96 फीसद से अधिक सस्ती दवाएं थी।

दरअसल, जेनरिक दवाएं वे हैं जो कि ब्रांडेड दवाओं की कॉपी होती हैं और समान परिणाम देती हैं, लेकिन इनकी कीमत कम होती हैं। भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआइआइ) और केपीएमजी के अप्रैल 2020 के अध्ययन में सामने आया है कि अमेरिका में दवाओं का 90 फीसद बाजार जेनरिक दवाओं का हैं। तीन में से हर एक उपभोग की जाने वाली दवा का उत्पादन भारतीय निर्माता द्वारा किया जाता है। भारत अपने कच्चे माल का करीब 68 फीसद चीन से प्राप्त करता है, जिसे एक्टिव फॉर्मास्युटिकल इंग्रीडिएंट्स (एपीआइ) के नाम से जाना जाता है। इसकी आपूर्ति श्रृंखला में किसी भी खलल से बड़ी परेशानी खड़ी हो सकती है।

एक नज़र इधर भी…
सस्ती दवाओं के वैश्विक निर्माता के रूप में भारत का उदय तब शुरू हुआ, जब तत्कालीन केंद्र सरकार ने पेटेंट अधिनियम 1970 पारित किया। इसने दवा बनाने के लिए उपयोग की जाने वाली प्रक्रियाओं को कानूनी संरक्षण दिया, न कि किसी दवा सामग्री को। भारतीय दवा कंपनी एसीजी वर्ल्डवाइड के प्रबंध निदेशक करण सिंह का कहना है कि सरकार को महसूस हुआ कि उसकी बड़ी आबादी कभी भी आयातित पेटेंट दवाओं का खर्च उठाने में सक्षम नहीं होगी और इसका हल ढूंढने की जरूरत है।

महामारी के दौरान आपूर्ति…
चीन में लॉकडाउन के दौरान चीन से तुरंत खरीद और आपूर्ति श्रृंखला को सुनिश्चित करने की कोशिश की गई। स्थानीय व्यापारियों द्वारा रखे गए स्टॉक को प्राप्त करने की भी कोशिश हुई, लेकिन यह बहुत कम और बहुत अधिक महंगा था। कुछ कंपनियों ने चीन से कच्चे माल के लिए निजी विमानों को किराए पर लेने की कोशिश की। हालांकि मार्च मध्य में, चीन में लॉकडाउन में ढील दी गई, लेकिन महामारी के कारण वैश्विक सीमा बंद होने से कोई भी कोशिश काम नहीं आ सकी। भारत के विदेश व्यापार महानिदेशालय के निदेशक पीसी मिश्रा ने अप्रैल के अंत में कहा कि अगर हम मार्च 2020 और मार्च 2019 की तुलना करें तो पाते हैं कि चीन से आयात 40 फीसद कम हुआ है। भारत अमेरिका में बेची जाने वाली जेनेरिक दवाओं के 24.5 फीसद का स्नोत है।फार्मास्यूटिकल्स एक्सपोर्ट प्रमोशन काउंसिल के अध्यक्ष दिनेश दुआ ने कहा कि चीन पर निर्भरता खत्म करने में कम से कम 10 साल लगेंगे।