AstraZeneca-Oxford University, COVID-19 vaccine can come in six months
Friday October 9, 2020 at 11:20 amअब अगर ध्यान दें तो, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड के वैज्ञानिकों ने एस्ट्राजेनेका के साथ मिलकर जिन ट्रायल्स को किया है, उसके तहत वैक्सीन कैंडिडेट ट्रायल के प्रॉसेस से अभी काफी दूर हैं। वहीं, ’द टाइम्स’ में एक रिपोर्ट के अनुसार, इसे दिसंबर में क्रिसमस के ज़रिये एक आवश्यक मंजूरी दी जा सकती है।
वैक्सीन के मेकिंग और डिस्ट्रीब्यूशन में शामिल यूके गवर्मेंट के सूत्रों के हवाले से एक अखबार ने कहा, “एडल्ट्स के लिए एक फूल वैक्सीन रोल-आउट प्रोग्राम को मंजूरी देने के बाद छह महीने या उससे कम का समय लग सकता है।” ऐसे में एक सरकारी सूत्र ने भी कहा, “हम छह महीने के हिसाब से बता रहे हैं, जिसकी वजह से इसके कम होने की संभावना ज़्यादा है।”
वैक्सीनेशन और इममुनिसेशन पर यूके की जॉइंट कमिटी द्वारा डेवलप्ड एक प्रोटोकॉल के तहत, किसी भी एप्रूव्ड वैक्सीन को 65 से अधिक लोगों को दिया जाएगा। इसके बाद हाई रिस्क वाले युवा को शामिल किया जाएगा, जिसमें एथिनक मिनोरिट्स के साथ-साथ गंभीर स्वास्थ्य आधारित लोग भी शामिल हो सकते हैं। वहीं, 50 से अधिक लोग इस लाइन में सबसे पीछे हैं, या यूं कहें कि एडल्ट्स के साथ लाइन में शामिल हैं।
यूके सरकार ने रोल-आउट के तैयार होने के बाद ऑक्सफोर्ड वैक्सीन की 100 मिलियन डोज़ का आदेश दिया है। साथ ही इससे पहले कि यह सभी रेगुलेटरी स्टेजेस को क्लियर ना कर दें, इसके लिए समय बचाने और सफल होने के लिए डोज़ का निर्माण तेज़ी से किया जा रहा है।
अखबार की रिपोर्ट के अनुसार, ट्रायल पर वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इस साल के अंत से पहले उन्हें परिणाम मिल जाएगा, और वह लोग यह दिखाएंगे कि यह कम से कम 50 प्रतिशत संक्रमण को रोक सकता है। वहीं, अगर इसे रेगुलेटर्स द्वारा एप्रूव्ड किया जाता है, तो यूके की नेशनल हेल्थ सर्विस (NHS) को तुरंत ही मॉस वैक्सीनेशन को शुरू करने के लिए कहा जा सकता है।
हालांकि, यूके सरकार के साथ-साथ अन्य लोग भी समय के हिसाब से ज़्यादा सतर्क रहते हैं, क्योंकि हर एडल्ट का वैक्सीनेटिंग एक बड़ी चुनौती है। क्या आप जानते हैं कि एक रॉयल सोसाइटी ने इस हफ्ते एक इंडियन ऑरिजन साइंटिस्ट के को-ऑथोरड की रिपोर्ट दी, जो वैक्सीन के प्रोड्यूसिंग और डियाट्रिब्यूटिंग में आगे आने वाले बड़े काम की चेतावनी दे रहे हैं।
इंपीरियल कॉलेज लंदन में केमिकल इंजीनियरिंग के प्रोफेसर निलय शाह ने कहा, “जब वैक्सीन उपलब्ध हो जाएगी, तब इसका मतलब ये नहीं होगा कि एक महीने के अंदर हर किसी को वैक्सीन लगाया जा सकेंगा। अगर आप ध्यान दें तो हम एक वैक्सीन को मंजूरी दिए जाने के छह से नौ महीने के हिसाब से एक साल बाद की बात कर रहे हैं।”
वैक्सीन प्रियॉरिटीसेशन के क्राइटेरिया के लिए रिपोर्ट को डिफाइंड और एक्सपलिसीट किया गया, और फिर वैक्सीन इफेक्टिवनेस, सेफ्टी, साइड इफेक्ट्स, एवेलेबिलिटी और एक्सेस” की एक्सपेक्टटेशन और अंडरस्टैंडिंग को मैनेज करने के लिए पब्लिक डॉयलाग और इंगेजमेंट का सहारा लिया गया।
हालांकि, गवर्मेंट के हेल्थ डिपार्टमेंट ने सोउट को कम करने की मांग करते हुए कहा कि इसका प्लानिंग प्रोसेस एक स्पीडी रोल-आउट सुनिश्चित करेगा। इस पर विभाग के प्रवक्ता ने कहा, “यह स्टडी सरकार और एनॉरमौस को प्रिफ्लेक्ट करने में फैल रहता है। दरअसल, इस स्टडी में एक सेफ और इफेक्टिव COVID-19 वैक्सीन को सरकार द्वारा विकसित की गई है।”
प्रवक्ता ने आगे कहा, “हमें विश्वास है कि देश भर में हमारे पास एक COVID-19 वैक्सीन को तैयार करने के लिए पर्याप्त प्रोविशन या ट्रांसपोर्ट, पीपीई और लॉजिस्टिक एक्सपरटीज हैं।”
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